जिनशासन को आलोकित करेगी संयम मार्ग पर अग्रसर कृपानिधि एवं कर्तव्यनिधि मुमुक्षु बहनें कंचनदेवी कोचर एवं क्षमा बोथरा को आचार्य भगवंत ने दिला...
- जिनशासन को आलोकित करेगी संयम मार्ग पर अग्रसर कृपानिधि एवं कर्तव्यनिधि
- मुमुक्षु बहनें कंचनदेवी कोचर एवं क्षमा बोथरा को आचार्य भगवंत ने दिलाई दीक्षा
बाड़मेर। सोमवार का दिन सूर्याेदय के साथ ही ऐसे स्वर्णिम पल लेकर आया और वैराग्य की ओर अग्रसर होती मुमुक्षु बहनें कंचनदेवी कोचर एवं क्षमा बोथरा को प्रातः 6.30 बजे उनके सांसारिक जीवन की अंतिम बिदाई खुशी-खुशी दी गई। बग्धी में विराजित मुमुक्षु बहनों के चेहरे के भाव अंतर्रात्मा में फैले अज्ञानांधकार को ध्वस्त करते नजर आ रहे थे और प्रभु के वचन का प्रकाश उनके मुख पर स्पष्ट दिखाई दे रहा था। इस परम सौभाग्य के अवसर पर हजारों की संख्या में धार्मिक एवं सामाजिक तथा परिवार के सदस्य मुमुक्षु बहनों की इस संयम पथ यात्रा में शामिल हुए। राग से वैराग्य की और ले जाने वाली मुमुक्षु बहनों की सांसारिक जीवन की यह यात्रा कुछ समय बाद मार्मिक क्षणों को संजोती हुई दीक्षा स्थल पहुंची जहां मुमुक्षु बहनों के हाथों लापसीलूट हुई एवं दोनों मुमुक्षु बहनों को शासन प्रभावक, ऋजुमना खरतरगच्छाचार्य श्री जिनपीयूषसागर सूरीश्वरजी म.सा. के वरद्हस्त से रजोहरण स्वीकार करने एवं परम पूज्या जिनशिुशुप्रज्ञा श्रीजी म.सा. के चरणों में जीवन समर्पित करने दीक्षा विधि को प्रारम्भ किया गया। इस पावन प्रसंग के गुरू भगवंतों के साथ हजारों धार्मिकबंधु साक्षी बने जिन्होनें संसार से विमुख होकर आत्मानुसम्मुख होने जा रही पुण्यशाली आत्माओं को संयम की इस महायात्रा में आशीर्वाद प्रदान किया।- ऐतिहासिक रहा दीक्षा महोत्सव, हजारों की जनभेदनी बनी साक्षी-
शताब्दी वर्ष के साथ चिंतामणि प्रभु पाश्र्वनाथ का प्राचीन जिनालय तीर्थ स्वरूप बालाघाट की पावन धरा पर शोभायमान है और उनकी अविरल कृपा दृष्टि से उनके पुण्यशाली आत्माओं ने संयम के राजमार्ग पर कदम बढ़ाने का महापुरूषार्थ किया है और इन्ही संयम के मार्ग पर चलने वाली मुमुक्षु बहनों का दीक्षा उत्सव बालाघाट की धरा पर ऐतिहासिक रहा जिसके आयोजक श्री पाश्र्वनाथ जैन श्वेताम्बर मंदिर ट्रस्ट रहे। कोचर एवं बोथरा परिवार की मुमुक्षु बहनों ने जहां इस धरा को धन्य कर दिया। दीक्षा महोत्सव में 17 से 22 फरवरी तक भव्य रथयात्रा एवं भागवती प्रवज्या की धन्याधिन्य मंगल घड़ी शामिल रही। प्रतिदिन धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित रहे। परमात्मा मिलन की संवेदना के रूप में दीक्षार्थी बहनों द्वारा मन की बात, वीर माता-पिता का बहुमान, दादा गुरूदेव महापूजन, रत्नत्रयी पूजा, स्वामी वात्सल्य आदि शामिल रहे। जिन कार्यो को जैन भागवती दीक्षा महोत्सव समिति द्वारा सानंद सम्पन्न करवाया। सम्पूर्ण महोत्सव सकल जैन समाज के साथ ही देश के कोने-कोने से धार्मिक सामाजिक बंधु पहुंचे जहां दीक्षार्थी बहनों के सभी उपकरणों की बोलियां भी लगाई गई और प्रथम विजय तिलक करने की बोली के लाभार्थी गोंदिया के पंकज चैपड़ा रहे वहीं बाहर एवं नगर से आये सामाजिक बंधुओं ने उपकरणों की बोलियां लगाई और इस ऐतिहासिक दीक्षा प्रसंग के साक्षी बने। दीक्षा महोत्सव में मिले प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष सहयोग के लिए सभी संस्थाओं एवं प्रमुख लाभार्थी बोथरा एवं कोचर परिवार के प्रति श्री पाश्र्वनाथ जैन श्वेताम्बर मंदिर ट्रस्ट एवं भागवती दीक्षा महोत्सव समिति ने आभार व्यक्त किया।- साध्वी कृपानिधि एवं कर्तव्यनिधि के रूप में मुमुक्षु बहनों का नूतन नामकरण
संयम जीवन के वर्षो की तपस्या के बाद वह पल आया जब श्वसन तंत्र पर आजीवन धड़कता यह जीवन संयम जीवन की ओर बढ़ चला। प.पू. खरतरगच्छाचार्य नमिऊण तीर्थ प्रणेता श्री जिनपीयूषसागर सूरीश्वरजी म.सा. के मुखारविंद से प.पू. साध्वी श्री प्रियंकराश्रीजी म.सा., प.पू. साध्वी श्री जिनशिशु प्रज्ञाश्रीजी म.सा. व साध्वी मंगलप्रभा जी आदि चतुर्विध संघ की साक्षी में जय-जयकारों के बीच दोनों मुमुक्षु बहनों की दीक्षा समारोह प्रारंभ हुआ जिसमें क्रमानुसार से दीक्षा की सारी विधियों को सम्पन्न कराया। दोनों दीक्षार्थी अष्टापद तीर्थ प्रेरिका वर्धमान तपोराधिका प.पू. साध्वी जिनशिशु श्री प्रज्ञाश्रीजी म.सा. की सुशिष्याएं दीक्षा विधि के बाद बनी। मुमुक्षु कंचनदेवी कोचर को प.पू. साध्वी श्री कृपानिधि म.सा. एवं मुमुक्षु क्षमा बोथरा को प.पू. साध्वी श्री कर्तव्यनिधि म.सा. नामकरण किया गया। सांसारिक रिश्ते-नातों को छोड़कर आध्यात्म पथ की ओर बढ़ चली इन मुमुक्षु बहनों को परिवार ने खुशी के आंसुओं के साथ संयम पथ पर आगे बढ़ने की सहर्ष विदाई दी। आचार्य भगवंत द्वारा दोनों दीक्षार्थी बहनों को रजोहरण प्रदान किया गया जिसकी प्रतीक्षा मुमुक्षु बहनों को वर्षों से थी, रजोहरण मिलते ही दोनों मुमुक्ष बहनों ने दीक्षा मंच पर बने परमात्मा के समवसरण की प्रदक्षिणा करते हुए हाथों में रजोहरण लेकर प्रभु के समक्ष नृत्य करते हुए संयम के आनंद की खुशी को व्यक्त किया। रजोहरण मिलने के बाद वेश परिवर्तन का समय निकट आ गया और पारम्परिक रंगीन वस्त्रों व आभूषणों को त्यागकर दोनों मुमुक्षु बहनों ने साधु वेश के रूप में श्वेत वस्त्र धारण किये। वेश परिवर्तन के उपरांत गुरूवरों ने केश लोचन कराया और दोनों मुमुक्षु बहनों के मुखमंडल पर प्रसन्नता के भाग जागृत दिखाई दिये। आचार्य भगवंत के मुखारविंद से सम्पूर्ण प्रक्रिया के साथ दीक्षा ग्रहण कराई गई और ऐतिहासिक पल के हजारों लोग साक्षी बने। सोमवार की प्रातः से दोपहर तक धार्मिक वातावरण की यह बेला मुमुक्षु बहनों के दीक्षा ग्रहण करने राग से वैराग्य, वैराग्य से वीतरागता की ओर ले जानी वाली यात्रा की ओर बढ़ चली।- गुरूभगवंतों की अमृतवाणी से....
शासन प्रभावक प.पू. जिनपीयूषसागर सूरीश्वरजी म.सा. द्वारा दीक्षा विधि के सम्पूर्ण कराने के उपरांत नूतन दीक्षित साध्वीवृंद को हितशिक्षा देते हुए कहा कि पापों का प्रतिक्रमण करते मुनि अईमुता मुनि को याद करना उन्हें आदर्श मानना, प्रतिलेखन, पड़िलेहन करते समय वल्कलचिरि मुनि को याद करना, प्रभुभक्ति करते समय स्थूलिभद्र जी का आलम्बन लेना, गुरू विनय करते समय मृगावती जी साध्वी को आदर्श बनाकर संयम पथ पर आगे बढ़ना, स्वाध्याय करते मासतुष मुनि को याद करना, गोचरी की गवेषणा करते ढंढण मुनि को स्मृति में रखना, वैयावच्च में नंदिषेण मुनि को केन्द्र में रखना, विहारचर्या में चंडरूद्राचार्य के शिष्य को लक्ष्य में रखना, परठते समय धर्मरूचि अणगार को याद करना, संयम शैया में चंदनबाला जी को आदर्श बनाकर पर्याय जैसी परिणिति बनाते चलना और गुरू आज्ञा में अल्पविराम या प्रश्नविराम मत रखना एकमात्र पूर्णविराम रखना। प.पू. साध्वी श्री जिनशिशु प्रज्ञाश्रीजी म.सा. ने अपने आशीर्वचनों में मुमुक्षु बहनों के दीक्षा ग्रहण करने के उपरांत कहा कि केवल वेश परिवर्तन करना ही दीक्षा नही है, स्व में स्व का साक्षात ही दीक्षा है और सांसारिक मोहमाया को छोड़कर अपने जीवन को धन्य बनायें वही प.पू. सम्यकरत्न सागरजी म.सा. ने आशीर्वचनों में दोनों ही मुमुक्षु बहनों को शुभकामनाएं दी। कोचर एवं बोथरा परिवार को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि भारती निर्मल बोथरा मुमुक्षु बहन की धर्म आराधना में सहायक रहें, सुरेश कोचर जो कि इस संसार में नही है उनको लेकर कहा कि काल के क्रुरचक्र की वजह से वे आज इस पावन अवसर पर उपस्थित नहीं है लेकिन उनकी आत्मा जहां पर भी है वह परम शांति की अनुभूति कर रही होगी। दीक्षा ग्रहण करने के उपरांत कृपानिधि म.सा. ने कहा कि मेरे जीवन में एक मां जिन्होनें मुझे जन्म दिया, दूसरी सासु मां जिन्होनें मुझे स्नेह दिया और अब गुरूमां की गोद मिल गयी। वहीं कर्तव्यनिधि म.सा. ने कहा कि गुरू भगवंतों, साध्वी भगवंतों ने मेरी भावनाओं को ध्यान में रखते हुए मुझे रजोहरण प्रदान किया है। मैं उन गुरूदेव, गुरूवर्या की बहुत उपकारी हूं कि उन्होनें मुझ पर इतना बड़ा उपकार किया है।- बड़ी दीक्षा महोत्सव नमिऊण तीर्थ मेें 11 को
नूतन दीक्षित साध्वी कृपानिधिश्रीजी व साध्वी कर्तव्यनिधि श्रीजी म.सा. की बड़ी दीक्षा विधान 11 मार्च को सिवनी नगर समीप स्थित नमिऊण तीर्थ में प.पू खरतरगच्छाचार्य श्री जिनपीयूषसागर सूरीश्वरजी म.सा. की पावन निश्रा व परम पूज्या साध्वी श्री प्रियंकराश्रीजी म.सा. एवं साध्वी श्री जिनशिशु प्रज्ञाश्रीजी म.सा. आदि ठाणा की पावन निश्रा में सम्पन्न होगी। बड़ी दीक्षा महोत्सव का सम्पूर्ण लाभ श्री पाश्र्वनाथ जैन श्वेताम्बर मंदिर ट्रस्ट एवं भागवती दीक्षा महोत्सव समिति द्वारा लिया गया है।