जोधपुर। सूर्य नगरी के घंटाघर जोकि अपने आप में एक बहुत बड़ी ख्याति प्राप्त है। परंतु अब धीरे-धीरे वहां पर। पूर्व में हाथ ठेला ...
जोधपुर। सूर्य नगरी के घंटाघर जोकि अपने आप में एक बहुत बड़ी ख्याति प्राप्त है। परंतु अब धीरे-धीरे वहां पर। पूर्व में हाथ ठेला व्यवसाय ने अपने पैर पसार रखे थे। परंतु प्रशासन की सख्त कार्यवाही हो के चलते। हाथ ठेला व्यवसाय को वहां से हटना पड़ा। और घंटाघर की कलाकृति व सुंदरता को वापस लाने के प्रयास मे प्रशासन लगा हुआ है। परंतु घंटाघर का सबसे बड़ा दीमक जुआ घर है। प्रशासन पुलिस प्रशासन। प्रत्येक बार एकतरफा कार्रवाई करती है। न नो की चारों तरफ पुलिस प्रशासन को। पूर्णतया जानकारी है कि घंटाघर क्षेत्र में सब्जी मंडी घंटाघर घड़ी के पास बनी दुकानों के अंदर तथा बिजलीघर के पास इन चारों तरफ जुआ संचालकों का बड़ा अखाड़ा चल रहा है। परंतु पुलिस प्रशासन केवल और केवल एक तरफा कार्रवाई करके रख देती है न की सभी के ऊपर कार्रवाई करती है। छोटी सी दुकान में जो कि कोई पपसा करके जुआघर संचालक है जो कि कैसीनो, चौकड़ी, तीन पत्ती यहां तक कि गुब्बा खाई। यह सभी काम। खुलेआम धड़ल्ले से चल रहे हैं। जबकि घंटाघर घड़ी के पास बनी। पर्यटकों की पुलिस चौकी भी है। साथ ही साथ। अब के हालात यह है कि घंटाघर के संपूर्ण क्षेत्र में घंटाघर में बनी चौकी के सभी कॉन्स्टेबल यहां तक कि अधिकारी ट्रैफिक पुलिस कर्मचारी। सभी की ग्रस्त बराबर निरंतर रहती है दूसरी तरफ सब्जी मंडी के पास भी कमल नामक व्यकि भी खुले आम सड़क पर प्याऊ के पास गुब्बा खाई संचालित कर रहा है वहां पर। फिर भी। पुलिस प्रशासन इस पर कोई भी अमल नहीं ले रही है। नहीं कोई सख्त कार्रवाई कर रही है। घंटाघर जो कि आम जनता के लिए। सस्ते सामान खरीदने के लिए दुकानें लगी है। वहीं एक नहीं दो नहीं दस दस दुकानों को एक ही दुकानदार ने लेकर जुआ घर चलाना शुरु कर दिया। घंटाघर में आने वाली महिलाएं बच्चे वृद्धजन जोकि वहीं से सामान खरीदते हैं। परंतु इन दुआ करो के चलते यहां पर बदमाश वह चोरों का जमावड़ा बना रहता है। साथ ही साथ दिनभर की मजदूरी करने वाले मजदूर भी वहीं बैठे रहते हैं। कुछ असामाजिक तत्वों बैठे रहते हैं जो महिलाओं के साथ छेड़खानी करते हैं। परंतु प्रशासन इन सब को अनदेखा करके केवल और केवल अपने चालान काटने में शांति व्यवस्था बनाने में और तो, और इनको देख कर भी मुंह पलट कर बैठ जाते हैं। शायद कहीं ना कहीं इनकी मिलीभगत तो होगी। यदि ऐसा नहीं होता तो जोधपुर की सुंदरता को दिखाने वाले घंटाघर के अंदर इस तरह के ना तो असामाजिक तत्व पनपते और ना ही यहां पर दुकानों में पर्दे लगाकर जुआ घर चलते और ना ही यहां पर किसी प्रकार के असामाजिक तत्वों का जमावड़ा होता। परंतु प्रशासन मौन बैठा है पुलिस प्रशासन केवल कार्रवाई के नाम पर कभी कभार पकड़ इन्हें अंदर कर देती है। चारों तरफ जुआघर चल रहे हे जहां एक और दोपहर को इन जुआ घरों में लाखों रुपए का आदान-प्रदान होता है। वहीं पुलिस हल्की फुल्की कार्रवाई कर कर कुछ एक सो बता कर मामले को रफा दफा कर देती है ना की इन से ली हुई राशि कम बता कर इन पर हल्का-फुल्का मुकदमा दर्ज करती है। पुलिस भी क्या कर सकें? इनके खिलाफ शायद कोई कठोर कदम हो ही नहीं सकते हैं। इसलिए पुलिस प्रशासन इनको हल्के मुकदमों में लेकर जमानत पर रिहा कर देती है। और इन जुआघर संचालकों का मनोबल बढ़ जाता है और यह धड़ल्ले से अपने काम को अंजाम देते रहते हैं और खुलेआम जुआ घर चलाते हैं।



