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मिठाई में मिलावट, स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़

                                                                                                                                   फाइल ...


                                                                                                                                   फाइल फोटो
बाड़मेर/धोरीमन्ना । मुनाफे के लालच में दुकानदार मिलावटी मावे नकली घी का इस्तेमाल कर आमजन के स्वास्थ्य के साथ खुलेआम खिलवाड़ कर रहे हैं।शादी की सीजन में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग ने अभी तक अभियान तक शुरू नहीं किया। धोरीमन्ना सहित क्षेत्र के अन्य गांवों में मिलावटी मावे नकली घी का गोरखधंधा लंबे समय से चल रहा है।धोरीमन्ना में इन दिनों मिलावटी मावे नकली घी के खेप की आवक बड़े पैमाने पर हो रही है। मिठाई की दुकान पर कदम रखते ही चमकीले बरक से लिपटी खूबसूरत मिठाइयां आकर्षित करती हैं। मिठाइयों पर लगने वाला बरक चांदी का बना हुआ होता है, मगर आजकल एल्युमिनियम कैमिकल से बना बरक इस्तेमाल हो रहा है। एल्युमिनियम की बरक की कीमत चांदी की बरक से कई गुणा कम होने के कारण दुकानदार बड़ी आसानी से ग्राहकों को ठगते है। व्यापारी को तो बड़ा मुनाफा मिल जाता हैं।
यहां से आता है नकली घी मिलावटी मावा: नकली घी मिलावटी मावे की सबसे बड़ी आवक धोरीमन्ना के ग्रामीण क्षेत्रो  से मावे की खेप नकली घी बाड़मेर, बालोतरा, सांचौर, जैसलमेर के इलाकों में भेजी जाती है। पाॅम आॅयल में एसेंस डालकर नकली घी तैयार किया जाता है। करीब 900 रुपए की लागत में तैयार 15 लीटर वजनी घी के टिन को 2200-2500 रुपए में दुकानदारों को बेचा जाता है। दुकानदार इसे असली बताकर 4500-4800 रुपए में बेचते हैं।
कैसे करें मिलावट की पहचान : ऑरिजनलबरक को हाथ से पकड़ते ही वह घुल जाती हैं, जबकि एल्युमिनियम कैमिकल से बनी हुई बरक घुलती नहीं, बल्कि हवा में उड़ती रहती हैं और जलाने पर भी ठोस गोली बन जाती हैं। शुद्ध पनीर को हाथ से मलते ही चिकनाई महसूस होने लगती हैं तथा खाने में भी मीठा लगता हैं। देसी घी में अरबी सी चिकनाई होती हैं तथा देसी घी की एक और खासियत होती है कि वह नार्मली जमता नहीं हैं। अगर देसी घी जमा हुआ हो तो मिलावटी की संभावना प्रबल रहती हैं।
जांच भी संदेह के घेरे में: जिम्मेदार विभाग के अधिकारी नकली घी की शिकायत पर जांच करते हैं। लेकिन अधिकांश मामलों में सांठ-गांठ कर मामले को रफा-दफा कर दिया जाता है। जानकार बताते हैं, कई बार सैंपल लिए जाते हैं पर मिलावटखोर मामले को या तो यहीं पर निपटा लेते हैं या फिर लेबोरेट्री तक पहुंचकर सैंपलिंग बदलवाने के तरीके तक जानते हैं। ऐसे में अभी तक एक भी मिलावटखोर के खिलाफ सख्त कार्यवाही नहीं हो पाई हैं।
सजा का भी हैं प्रावधान: लोग सोचते हैं कि सैंपलिंग महज औपचारिकता होती है। कभी किसी को सजा मिलती ही नहीं, ऐसा नहीं हैं। अब तक कई मुकदमे मिलावट खोरों पर दर्ज हो चुके हैं।
जेब ढीली कर रही है शुगर फ्री मिठाई: एक दुकानदार ने बताया कि शुगर फ्री के नाम नार्मल मिठाई ही बेची जाती है, फर्क सिर्फ इतना है कि इस मिठाई में केवल मिठास ही कम दामों में ज्यादा हेरफेर होता है।