बरेली। सुमित कुमार सिंह संवाददाता बरेली नागरिकता कानून और एनपीआर पर गरमाए माहौल को भी शांत करना भी शायद संघ प्रमुख के एजेंडे में था...
बरेली।
सुमित कुमार सिंह संवाददाता बरेली
नागरिकता कानून और एनपीआर पर गरमाए माहौल को भी शांत करना भी शायद संघ प्रमुख के एजेंडे में था, इसीलिए उन्होंने पंचतंत्र की एक कहानी के जरिये मुसलमानों को संघ के खिलाफ वहम फैलाने वालों से सावधान रहने का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि संघ पर आरोप लगते रहते हैं लेकिन आरोप लगाने वालों के इतिहास और वर्तमान को देख लिया जाए तो साफ हो जाएगा कि अंग्रेजों की तरह वहम पैदा करना उनकी चाल है। उन्होंने यह भी कहा कि स्वयंसेवकों के कामों से संघ के बारे में कोई धारणा नहीं बनाई जानी चाहिए क्योंकि स्वयंसेवकों का रिमोट संघ के पास नहीं रहता।
संघ प्रमुख ने कहा कि संघ पर आरोप लगाने वालों की चाल है कि उसके खिलाफ एक वहम पैदा करें क्योंकि वहम में आदमी विचार नहीं करता। मगर संघ किसी को अपना कोई दुश्मन नहीं मानता। बल्कि यह सब करने वालों को भी अपना मानता है। संघ के लिए पूरे समाज का मतलब पूरा समाज ही है। ऐसे लोगों पर गुस्सा भी नहीं है। सारे प्रचार के हथकंडे चलते हैं। उन्होंने कहा कि संघ के बारे में धारणा बनाते समय लोग संघ देखने के बजाय यह देखते हैं कि संघ के स्वयंसेवक क्या हैं। वे तो सभी कामों में हैं। वह उनका संघ से अलग स्वायत्त काम है। फिर भी वहम फैलाया जाता है कि संघ किसी को समाप्त कर देगा। हम तो समाप्त करने में विश्वास ही नहीं करते क्योंकि हम हिंदू हैं और हिंदू वसुधैव कुटुंबकम कहता है।
उन्होंने सियारों की कुटिलता की वजह से शेर और बैल की दोस्ती दुश्मनी में बदल जाने की पंचतंत्र की एक कहानी सुनाते हुए कहा कि वहम फैलाने वाले पहले ही निष्कर्ष दे देते हैं कि संघ वाले जालिम और उनके शत्रु हैं। ये लोग हमें गुलाम बनाने वाले अंग्रेजों की तरह हैं। उन्हें फासिस्ट कहते हैं, फासिस्ट के पास तो सत्ता होनी चाहिए। मगर संघ सत्ता से दूर है। हमारा मत अलग होगा तो हम विरोध करेंगे, मगर निर्णय तो समाज ही करेगा। हमारे मन में विश्वास है कि आपसी फूट चलती है, उसके रास्ते से गुजकरर भी हम सब एक रहेंगे, हमारी एकता का सूत्र इतना मजबूत है। उन्होंने रविंद्रनाथ ठाकुर के एक निबंध का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने कहा था कि अंग्रेज समझते हैं कि हिंदू और मुसलमान आपस में लड़ाई करते-करते समाप्त हो जाएंगे। मगर ऐसा नहीं होगा। इसी आपसी संघर्षण में रहकर विकास का कोई न कोई तरीका ये लोग ढूंढ लेंगे और वह अवश्य ही हिंदू तरीका होगा। यह तत्व इतना मजबूत है कि बिना किसी की विशेषता का हनन किए सबको आत्मसात करेगा। रविंद्र नाथ ठाकुर ने यह संघ के जन्म के बहुत पहले कहा था।
मोहन भागवत व्याख्यान सुनते लोग। संघ भारत से प्रेम करना सिखाता है
मोहन भागवत ने कहा कि संघ शरीर मन और बुद्धि के अनुशासन का अभ्यास शाखाओं में कराता है। यहां स्वयंसेवक भारत से प्रेम करना सीखते हैं, चाहे जाति-धर्म कोई भी हो। शाखाओं में जो आते हैं वह भारत की सभी पूजाओं के प्रतिनिधि हैं। मुसलमान भी हैं, हम उनका ढिंढोरा नहीं पीटते। क्योंकि हम सब हिंदू हैं और यही भारत है। कोई कहता है कि हम अपने आपको हिंदू नहीं कहेंगे तो भी ठीक है, हमको शब्दों से कोई विरोध नहीं है। हमारे देश का कोई भी संप्रदाय हमारा अपना है, यह भावना हम कर सकते हैं और करते हैं।
जिन्होंने संघ को समाप्त करने की बात कही, खुद समाप्त हो गए
कहा, अपनत्व के एक सूत्र में संपूर्ण भारतवर्ष को बांधने का संघ का लक्ष्य है। इसी को हम हिंदू संगठन कहते हैं। हिदू संगठन होने के बाद संघ को और कोई काम नहीं करना है। जो करने होंगे वो करने के लिए उस समय का समाज सन्नद्ध हो जाएगा। वह सबके लिए काम करेगा। कितने प्रसंग आए, जब संघ को समाप्त करने की बातें हुईं मगर संघ समाप्त नहीं हुआ, ऐसा कहने वाले समाप्त हो गए। संघ का काम प्रेम और सत्य लेकर चलने वाला काम है, यही हमारा बचाव करता है। चलेगा-बढ़ेगा, सबको साथ में लेकर भारतवर्ष को उन्नति दिलाने का काम करेगा।
संघ में आकर उसे देखिए-परखिए
संघ प्रमुख ने सभी जातपात, धर्म, पंथ और संप्रदायों के लोगों का आह्वान किया कि अगर उन्हें संघ को देखना-समझना है तो वे सीधे संघ में आकर उसे देखें। उन्होंने कहा कि संघ में आने-जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं है न कोई फीस लगती है। छह महीने या साल भर जितना चाहिए रहिए और अंदर से देखिए। उसके कार्यकर्ताओं, उनके क्रियाकलाप और उनके परिवारों को भी देखिए। संघ प्रमुख ने कहा कि विरोध सत्य पर आधारित होना चाहिए, हम ऐसे विरोध का स्वागत करते हैं।