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ज्ञान से पहले अनुशासन सीखना आवश्यक : पार्श्वचंद्र महाराज

माउंट आबू। जयगच्छाधिपति आचार्य प्रवर पार्श्वचंद्र महाराज साहेब, प्रवचन प्रभावक डॉ. पदमचंद्र महाराज साहेब आदि के पावन सानिध्य में मा...




माउंट आबू। जयगच्छाधिपति आचार्य प्रवर पार्श्वचंद्र महाराज साहेब, प्रवचन प्रभावक डॉ. पदमचंद्र महाराज साहेब आदि के पावन सानिध्य में माउंट आबू के रघुनाथ मंदिर धर्मशाला में चल रहे पन्द्रह दिवसीय श्री जयमल जैन आध्यात्मिक ज्ञान ध्यान संस्कार शिविर के दूसरे दिन आचार्य प्रवर पार्श्वचंद्र महाराज साहेब ने शिविरार्थियों को उद्बोधन देते हुए कहा कि ज्ञान सीखने से पहले अनुशासन सीखना आवश्यक है। अनुशासन भी एक अनुसंधान है एक साधना है एक आराधना है। यह जयमल शिविर अनुशासन के लिए सुपरिचित है। अनुशासित व्यक्ति महानता के मेरू को चढ सकता है। जो स्वयं अनुशासन में रह सकता है वही दूसरों पर अनुशास्ता बन सकता है। आज हर व्यक्ति दूसरों पर अनुशासन करने का प्रयास करता है पर जो स्वयं जीवन में कभी अनुशासित नही रहा वह दूसरों पर क्या अनुशासन रख सकेगा। वह तो केवल अनाधिकार चेष्टा होगी। अनुशासन के इस रहस्य को प्रभु महावीर ने प्रकट करते हुए कहा - 'अणुसासिओ ण कुप्पेज्जा' अर्थात श्रेष्ठ जनों के द्वारा हम पर किये जाने वाले अनुशासन से कभी कुपित नही होना चाहिए, वह अनुशासन एक रक्षा कवच है जिसे धारण करने के बाद जीवन में विसंगति नही आती है।
आचार्य प्रवर ने कहा कि अनुशासन को सुदृढ़ बनाने के लिए जयमल शिविर लगाया जाता है। शिविर की परिभाषा बताते हुए कहा कि 'शि' यानि आध्यात्मिक शिक्षा का शिक्षण प्राप्त करना, उस शिक्षण में इतना तल्लीन बन जाना कि मैं और तू जैसे शब्दों की सीमा दूर हो जाती है । शिक्षा आत्मा में ज्यों ज्यों उतरती जाती है त्यों त्यों ज्ञान चेतना बलवती होती जाती है। 'वि' यानि विनय एवं विवेक पूर्वक जिस विद्या की साधना आराधना जहाँ की जाए, 'र' यानि जिसमें पूर्णतः आत्म रमणता है। आत्म रमणता पूर्वक अध्ययन करने वाले शिविरार्थी अगर आलस्य और प्रमाद से दूर रहते हैं तो उन्हें महान उपलब्धि की प्राप्ति होती है क्योंकि प्रमाद साधक का सबसे बड़ा शत्रु है। छोटी बड़ी गलतियां प्रमाद के फलस्वरूप होती है। प्रभु महावीर ने भी अपने साधक शिष्यों को पुनः पुनः संबोधित करते हुए कहा "समयं गोयम मा पमायए" - क्षण मात्र का भी प्रमाद मत करो। प्रभु महावीर ने गौतम स्वामी को मुख्य रूप से संबोधित किया है क्योंकि गौतम स्वामी प्रमादी नही थे परंतु योग्य पात्र को संबोधित करके उसी के द्वारा अन्यों को जागृत किया जा सकता है। प्रमाद महापाप है। संसार में जितने भी पाप के कारण हैं, वे प्रमाद के दायरे में आते हैं। आलस्य और प्रमाद दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और एक दूसरे को परस्पर प्रश्रय देने वाले हैं। शिक्षा के लिए दोनों का परित्याग अनिवार्य है। मंच का संचालन संजय पींचा ने किया। सोमवार को सभी शिविरार्थियों को दीपचंद, मांगीलाल, सागरमल, सम्पतराज, हुकमचंद लुंकड़ परिवार की ओर से आसन भेंट किये गए एवं देवीचंद, पारसमल, मोहनलाल भंसाली परिवार की ओर से शिविरार्थियों को सामायिक परिधान व दुपट्टे भेंट किये गए।
श्री अ. भा. श्वे. स्था. जयमल जैन श्रावक संघ, शाखा मैसूर के अध्यक्ष प्रकाशचंद रूणवाल शिविर निरीक्षण हेतु पधारे एवं शिविरार्थियों के प्रतियोगिता पुरस्कार हेतु 5100 रुपये देने की घोषणा की जिनका संघ की ओर से सम्मान किया गया।