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जमकर फल-फूल रहा है अवैध दवा विक्रेताओं का कारोबार

नाकाफी नजर आ रहीं औषधि विभाग की औसत कार्यवाहियां, अवैध दवा विक्रेताओं के हौंसले हो रहे बुलंद ! विशेष रिपोर्ट : रघुराज उपाध्याय जो...




नाकाफी नजर आ रहीं औषधि विभाग की औसत कार्यवाहियां, अवैध दवा विक्रेताओं के हौंसले हो रहे बुलंद !

विशेष रिपोर्ट: रघुराज उपाध्याय


जोधपुर शहर भर में दवाई की दुकानों की भरमार है। लेकिन यहां हैरान करने वाली बात यह है कि दवाई की दुकानों की संख्या फार्मासिस्टों की संख्या से कई गुना अधिक है। यही नहीं, इनमें से 25 से 30 प्रतिशत फर्मासिस्ट तो मार्केटिंग करने के साथ साथ नौकरियां भी कर रहे हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार शहर की कई दुकानदारों के पास लाइसेंस तक नहीं हैं। कुछ दुकानदार ऐसे भी हैं जो एक ही लाइसेंस पर 2 या अधिक दुकानें खोल कर बैठे हैं। इसके बावजूद भी औषधि विभाग की नजर इन पर नहीं पड़ रही है। शायद यही वजह है कि इन अवैध दवा विक्रेताओं का कारोबार जमकर फल फूल रहा है।
जोधपुर शहर के अलावा जिले भर के ग्रामीण क्षेत्रों की बात करें तो यहां के हाल शहर से भी ज्यादा खराब हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित हो रही अधिकांश दवाई की दुकानों में लाइसेंस और फार्मासिस्टों का पतियारा ही नहीं है। हमारी पड़ताल में यह चौकाने वाला सच सामने आया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में फार्मासिस्टों की संख्या से दुगुनी दवाई की दुकानें हैं। कई तो परचून की दुकान की तरह दवा की दुकान खोल कर बैठे हैं। दुकानों पर दवा देने वाले फार्मासिस्टों की जगह बिना डिप्लोमा या डिग्रीधारी दवा देने का काम कर रहे हैं।

चल रहा किरायेबाजी का खेल
शहर भर में कई दवाई की दुकान ऐसी हैं जो किराये के लाइसेंस पर चलाई जा रही हैं। ये दुकानदार किसी न किसी फार्मासिस्ट से उसका लाइसेंस किराये पर लेकर अपनी दुकानदारी जमाते हैं। जिन फार्मासिस्टों का लाइसेंस किराये पर चल रहा होता है, वे या तो किसी और दुकान पर नौकरी करते हैं या फिर किसी दवा कंपनी की मार्केटिंग का काम करते हैं।

कई दुकानों पर नहीं हैं फार्मासिस्ट
शहर भर की कई दुकानों में फार्मासिस्ट ही नहीं है। दुकानदार बिना फार्मासिस्ट के ही अपनी दुकानदारी जमा कर बैठे हैं। इन दुकानों पर दवा देने वाले फार्मासिस्टों की जगह बिना डिप्लोमा या डिग्रीधारी दवा देने का काम कर रहे हैं। कई जगह तो वे बिना डिप्लोमा या डिग्रीधारी मरीजों का इलाज भी करते नजर आते हैं। जिसके दुष्परिणाम कई बार देखने को मिलते रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तो अधिकांश दुकानों का यही आलम है। ग्रामीण क्षेत्रों के हालात शहरी क्षेत्रों से ज्यादा बदतर हैं।

कई बिना लाइसेंस की दुकानें
शहर में किराये के लाइसेंस या बिना फार्मासिस्ट के अलावा कई दुकानें ऐसी भी हैं जो बिना लाइसेंस के ही चल रही हैं। ये दुकानदार ना तो लाइसेंस रखते हैं और न ही फार्मासिस्ट। कुछ ऐसे भी हैं जो अभी फार्मासिस्ट की पढ़ाई कर रहे हैं, जिन्हें अभी ना तो डिग्री हासिल हुई है और न ही डिप्लोमा। फिर भी वे जमकर अपनी दुकानदारी चला रहे हैं।

उठ रहे सवाल
शहर के साथ पूरे जिले भर में इस तरह से बिना फार्मासिस्ट और बिना लाइसेंस के चल रही इन दवाई की दुकानों पर विभाग द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है। हां, कुछेक छोटी मोटी कार्यवाही करके विभाग खानापूर्ति जरुर करता है। लेकिन खुलेआम नियम विरुद्ध चल रही इन दुकानों पर विभाग द्वारा ढंग से कार्यवाही नही किये जाने से विभाग सन्देह के घेरे में नजर आ रहा है। दुकानदारों द्वारा चलाए जा रहे इस गोरखधंधे पर विभाग के जिम्मेदार कहीं न कहीं मेहरबान नजर आ रहे हैं। शायद यही वजह होगी इसीलिये विभागीय कार्यवाही के नाम पर पिछले एक साल में औसत कार्यवाहियां ही देखने को मिली हैं। जिससे इन अवैध दवा विक्रेताओं के हौंसले और भी बुलन्द होते नजर आ रहे हैं। दवाओं की बिक्री औषधि विभाग के निर्धारित मापदंडों के अनुसार नहीं करने से गांवों के हालात विकट होने लगे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या विभाग पर जताया जा रहा सन्देह सही है ? क्या वाकई इन अवैध दुकानदारों पर विभाग मेहरबान है ? बिना डिप्लोमा या डिग्रीधारी द्वारा दवाई देने से अनहोनी पर जिम्मेदार कौन होगा ? ऐसे बहुतेरे सवाल हैं लेकिन देखने वाली बात होगी कि औषधि विभाग इन सवालों के जवाब कितनी जायज कार्यवाहियों से देता है।